आर्योद्देश्यरत्नमाला
सम्पूर्ण सत्यार्थप्रकाश Click now ओ३म् आर्योद्देश्यरत्नमाला श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिनिर्म्मिता ॥ ईश्वरादितत्त्वलक्षणप्रकाशिका॥ आर्यभाषाप्रकाशोज्ज्वला॥ आर्यादिमनुष्यहितार्था॥ ग्रन्थ परिचय इस ग्रन्थ में महत्त्वपूर्ण व्यावहारिक शब्दों (आर्यों के मन्तव्यों) की परिभाषाएँ प्रस्तुत की गई हैं, जो वेदादि शास्त्रों पर आधारित हैं। इसमें १०० मन्तव्यों (नियमों) का संग्रह है। अर्थात् सौ नियमों रूपी रत्नों की माला गूँथी गई है। धर्म और व्यवहार में आने वाले इन शब्दों एवं नियमों का सच्चा तथा वास्तविक अर्थ समझ कर व्यक्ति भटकने से बच जाए। अत: सब मनुष्यों के हितार्थ लिखी गई। यह ग्रन्थ विक्रमी संवत् १९३४, श्रावण मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी, बुधवार के दिन पूर्ण हुआ। (सम्पादक) आर्योद्देश्यरत्नमाला १. ईश्वर — जिसके गुण, कर्म, स्वभाव और स्वरूप सत्य ही हैं, जो केवल चेतनमात्र वस्तु है तथा जो अद्वितीय, सर्वशक्तिमान्, निराकार, सर्वत्र व्यापक, अनादि और अनन्त आदि सत्यगुणवाला है और जिसका स्वभाव अविनाशी, ज्ञानी, आनन्दी, शुद्ध, न्यायकारी, दयालु और अजन्मादि है, जिसका कर्म्म जगत् ...