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विशुद्ध मनुस्मृतिः― प्रथम अध्याय

मानवधर्मशास्त्रम् अथवा विशुद्ध मनुस्मृति सत्यार्थप्रकाश/विशुद्ध मनुस्मृति/वैदिक गीता Click now अथ प्रथमोऽध्यायः (हिन्दीभाष्य-'अनुशीलन'-समीक्षा सहित) [सृष्टि-उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय  १.५ से १.१४४ (२.२५) तक] मनुस्मृति के प्रवचन की भूमिका (१.१ से १.४ तक) महर्षियों का मनु के पास आगमन― मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य महर्षयः।  प्रतिपूज्य यथान्यायमिदं वचनमब्रुवन्॥१॥ (१) महर्षि लोग, एकाग्रतापूर्वक बैठे हुए मनु=स्वायम्भुव मनु के पास आकर, और उनका यथोचित सत्कार करके यह वचन बोले॥१॥  महर्षियों का मनु से वर्णाश्रम-धर्मों के विषय में प्रश्न― भगवन् सर्ववर्णानां यथावदनुपूर्वशः।  अन्तरप्रभवानां च धर्मान्नो वक्तुमर्हसि॥२॥ (२) हे भगवन् ! आप सब वर्णों=ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और सभी वर्णों के अन्तर्गत स्थिति वाले आश्रमों=ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास के धर्मों-कर्तव्यों को ठीक-ठीक रूप से और क्रमानुसार अर्थात् वर्णों को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के क्रम से तथा आश्रमों को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास के क्रम से हमें बतलाने में समर्थ=योग्य हैं॥२॥ त्वमेको ह्यस्य