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विशुद्ध मनुस्मृतिः— द्वितीय अध्याय

मानवधर्मशास्त्रम् अथवा विशुद्ध मनुस्मृति सत्यार्थप्रकाश/विशुद्ध मनुस्मृति/वैदिक गीता Click now अथ द्वितीयोऽध्यायः (हिन्दीभाष्य-'अनुशीलन'-समीक्षा सहित) (संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय) (संस्कार २.१ से २.४३ तक) संस्कारों को करने का निर्देश और उनसे लाभ―   वैदिकैः कर्मभिः पुण्यैर्निषेकादिर्द्विजन्मनाम्।  कार्यः शरीरसंस्कारः पावनः प्रेत्य चेह च॥१॥ [२.२६] (१) द्विजों=ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों को इस जन्म और परजन्म में तन-मन, आत्मा को पवित्र करने वाले गर्भाधान से लेकर अन्त्येष्टि पर्यन्त संस्कार पुण्यरूप वेदोक्त यज्ञ आदि कर्मों और वेदोक्त मन्त्रों के द्वारा करने चाहियें॥१॥ संस्कारों से आत्मा के बुरे संस्कारों का निवारण― गार्भैर्होमैर्जातकर्मचौलमौञ्जीनिबन्धनैः।  बैजिकं गार्भिकं चैनो द्विजानामपमृज्यते॥२॥ [२.२७] (२) गर्भकालीन अर्थात् गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन इन होमपूर्वक किये जाने वाले संस्कारों से जन्म होने पर शैशवावस्था में जो संस्कार किये जाते हैं, वे जातकर्म कहलाते हैं। उनमें जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन और चौल अर्थात् चूडाकर्म, तथा मेखला-बन्धन अर्थात् उपनयन एव