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विशुद्ध मनुस्मृतिः― द्वादश अध्याय

अथ द्वादशोऽध्यायः सत्यार्थप्रकाश/विशुद्ध मनुस्मृति/वैदिक गीता Click now (हिन्दीभाष्य-'अनुशीलन'- समीक्षा सहित)  (कर्मफल-विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन) (१२.३ से १२.११६ तक) त्रिविध कर्मों का और त्रिविध गतियों का कथन― शुभाशुभफलं कर्म मनोवाग्देहसम्भवम्।  कर्मजा गतयो नॄणामुत्तमाधममध्यमाः॥३॥ (१) मन, वचन और शरीर से किये जाने वाले कर्म शुभ-अशुभ फल को देने वाले होते हैं, और उन कर्मों के अनुसार मनुष्यों की उत्तम, अधम और मध्यम ये तीन गतियाँ=जन्म की स्थितियां होती हैं॥३॥ मन कर्मों का प्रवर्तक― तस्येह त्रिविधस्यापि त्र्यधिष्ठानस्य देहिनः। दशलक्षणयुक्तस्य मनो विद्यात्प्रवर्तकम्॥४॥ (२) इस विषय में मनुष्य के मन को उस उत्तम, मध्यम, अधम भेद से तीन प्रकार के; मन, वचन, क्रिया भेद से तीन आश्रय वाले और दशलक्षणों से युक्त कर्म को प्रवृत्त करने वाला जानो॥४॥  त्रिविध मानसिक बुरे कर्म― परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम्। वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधं कर्म मानसम्॥५॥ (३) मन से चिन्तन किये गये अधर्म=अशुभ फलदायक कर्म तीन प्रकार के हैं―दूसरे के धन, पदार्थ आदि को अपने अधिकार में लेने का विचार रखना, मन में